Monday, November 23, 2009

गरीब की मजबूरी

बात कुछ दिनों पहले की है। मैं अपने मित्र के साथ उसके लिए संविदा शिक्षक पात्रता परीक्षा का आवेदन फॉर्म लेने गया था। फॉर्म लेने हेतु लंबी कतार लगी थी। उसी कतार में मेरे मित्र से कुछ आगे एक सज्जन लगे थे। वेशभूषा में वे काफी गरीब मालूम होते थे। वे अपनी बिटिया (पुत्री) हेतु फॉर्म लेने आए थे। फॉर्म की कीमत विशेष वर्ग हेतु 150 रुपए थी। जब उन सज्जन की बारी आई तो उन्होंने काउंटर पर दो पचास के नोट तथा बाकी पचास रुपए की चिल्लर देनी चाही परंतु काउंटर पर बैठी महिला कर्मचारी ने चिल्लर लेने से सख्त मना कर दिया। उन्होंने कहा कि चिल्लर कब तक गिनते रहेंगे। सज्जन ने बहुत अनुनय किया कि मेरे पास चिल्लर ही है, दूसरे नोट नहीं है। बिटिया के लिए फॉर्म ले जाना जरूरी है परंतु उनकी बात नहीं सुनी गई। मेरे मित्र ने उनसे चिल्लर लेकर उन्हें पचास रुपए का नोट तो दे दिया। परंतु मेरे मन में यह बात चुभ रही थी क्यों कुछ शिक्षित एवं सभ्य कहलाने वाले लोग अपनी जरा-सी असुविधा के लिए किसी गरीब की मजबूरी नहीं समझते?

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झील सी आंखों में उतर जाना भी

आइना हो जो मुकाबिल तो संवर जाना भी,
किसी की झील सी आंखों में उतर जाना भी।
जिस्म की हद से किसी रोज गुजर जाना भी,
खुशबुओं सा कभी हर सिम्त बिखर जाना भी।
उसमें सहरा भी है ये जान सकोगे कैसे,
तुमने कश्ती से समंदर को अगर जाना भी।
दिल की बस्ती की तरफ भी कभी हो लेते तुम,
तुमने तो छोड ही रक्खा है उधर जाना भी।
सिर्फ लब ही नहीं नजरों की जबां भी पढिए
उसके इकरार में शामिल है मुकर जाना भी।
हुई जंजीर थकन और सफर बाकी है,
यानी दुश्वार है चलना भी ठहर जाना भी।

Thursday, November 19, 2009

हर फ़कीरों का घर नहीं होता

आपका साथ अगर नहीं होता

खुबसूरत सफर नहीं होता

सिर्फ़ हैवानियत ही रह जाती

जज्ब -ए-इश्क़ अगर नहीं होता

पूजता चाँद को भला कोई

खुबसूरत अगर नहीं होता

आसमान है ज़मीन है लेकिन

हर फ़कीरों का घर नहीं होता।

Tuesday, November 17, 2009

वो बेनकाब आई

एक लड़की रोजाना बुर्के में कॉलेज जाती thi....
एक लड़का उस लड़की को बेहद प्यार करता tha॥
लड़का रोजाना उस लड़की को रस्ते में जाते हवे छेडा करता tha....
लड़का लड़की से कहता ......एक पर्दा नाशी ...पर्दा हटा और अपने हुस्न का जलवादिखा ॥
लड़की उसकी बात को सुनती और चुपचाप चली जाती ...
एक दिन लड़के ने रस्ते में लड़की का हाथ पकड़कर कहा ...
जान ,जानेमान , जानेजिगर , जाने तमन्ना ॥
अगर तुमने कल मेरी मोहब्बत को काबुल नहीं किया तो मैं अपनी जान दे दूंगा ।
लड़की मुस्कुराकर चली गयी ॥
लड़की 3 - 4 दिन तक कोल्लेज नहीं गई
बाद में लड़की को पता चला की लड़के ने सच में खुदखुशी कर ली है ॥
लड़की रोटी हुयी लड़के की कब्र पर गयी और अपना नकाब खोल कर बोली ॥
अ मेरे गुमनाम आशिक देख तेरी महबूबा आई है जी भर के उसका दीदार कर ले ॥
तभी कब्र में से आवाज़ आती है ॥
हें खुदा ये तेरी कैसी खुदाई है ,आज हम परदे में हैं और वो बेनकाब आई

दोस्त का प्यार चाहिए

ना ज़मीन, ना सितारे, ना चाँद, ना रात चाहिए,
दिल मे मेरे, बसने वाला किसी दोस्त का प्यार चाहिए,
ना दुआ, ना खुदा, ना हाथों मे कोई तलवार चाहिए,
मुसीबत मे किसी एक प्यारे साथी का हाथों मे हाथ चाहिए,
कहूँ ना मै कुछ, समझ जाए वो सब कुछ,
दिल मे उस के, अपने लिए ऐसे जज़्बात चाहिए,
उस दोस्त के चोट लगने पर हम भी दो आँसू बहाने का हक़ रखें,
और हमारे उन आँसुओं को पोंछने वाला उसी का रूमाल चाहिए,
मैं तो तैयार हूँ हर तूफान को तैर कर पार करने के लिए,
बस साहिल पर इन्तज़ार करता हुआ एक सच्चा दिलदार चाहिए,
उलझ सी जाती है ज़िन्दगी की किश्ती दुनिया की बीच मँझदार मे,
इस भँवर से पार उतारने के लिए किसी के नाम की पतवार चाहिए,
अकेले कोई भी सफर काटना मुश्किल हो जाता है,
मुझे भी इस लम्बे रास्ते पर एक अदद हमसफर चाहिए,
यूँ तो 'मित्र' का तमग़ा अपने नाम के साथ लगा कर घूमता हूँ,
पर कोई, जो कहे सच्चे मन से अपना दोस्त, ऐसा एक दोस्त
कदम तो सभी साथ चलते हैजिन्दगी भर कोई साथ निभाहता नही
अगर रोकर भुलाई जाती यादेतो हसकर कोई गम छुपता नहीं