Monday, November 23, 2009

झील सी आंखों में उतर जाना भी

आइना हो जो मुकाबिल तो संवर जाना भी,
किसी की झील सी आंखों में उतर जाना भी।
जिस्म की हद से किसी रोज गुजर जाना भी,
खुशबुओं सा कभी हर सिम्त बिखर जाना भी।
उसमें सहरा भी है ये जान सकोगे कैसे,
तुमने कश्ती से समंदर को अगर जाना भी।
दिल की बस्ती की तरफ भी कभी हो लेते तुम,
तुमने तो छोड ही रक्खा है उधर जाना भी।
सिर्फ लब ही नहीं नजरों की जबां भी पढिए
उसके इकरार में शामिल है मुकर जाना भी।
हुई जंजीर थकन और सफर बाकी है,
यानी दुश्वार है चलना भी ठहर जाना भी।

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