Wednesday, December 23, 2009

सच्चा प्यार कभी इम्तहान का मोहताज नहीं होता

एक चिडिया को एक सफ़ेद गुलाब से प्यार हो गया , उसने गुलाब को प्रपोस किया , गुलाब ने जवाब दिया की जिस दिन मै लाल हो जाऊंगा उस दिन मै तुमसे प्यार करूँगा , जवाब सुनके चिडिया गुलाब के आस पास काँटों में लोटने लगी और उसके खून से गुलाब लाल हो गया, ये देखके गुलाब ने भी उससे कहा की वो उससे प्यार करता है पर तब तक चिडिया मर चुकी थी इसीलिए कहा गया है की सच्चे प्यार का कभी भी इम्तहान नहीं लेना चाहिए, क्यूंकि सच्चा प्यार कभी इम्तहान का मोहताज नहीं होता है , ये वो फलसफा; है जो आँखों से बया होता है , ये जरूरी नहीं की तुम जिसे प्यार करो वो तुम्हे प्यार दे , बल्कि जरूरी ये है की जो तुम्हे प्यार करे तुम उसे जी भर कर प्यार दो, फिर देखो ये दुनिया जन्नत सी लगेगी प्यार खुदा की ही बन्दगी है ,खुदा भी प्यार करने वालो के साथ रहता है

Monday, November 23, 2009

गरीब की मजबूरी

बात कुछ दिनों पहले की है। मैं अपने मित्र के साथ उसके लिए संविदा शिक्षक पात्रता परीक्षा का आवेदन फॉर्म लेने गया था। फॉर्म लेने हेतु लंबी कतार लगी थी। उसी कतार में मेरे मित्र से कुछ आगे एक सज्जन लगे थे। वेशभूषा में वे काफी गरीब मालूम होते थे। वे अपनी बिटिया (पुत्री) हेतु फॉर्म लेने आए थे। फॉर्म की कीमत विशेष वर्ग हेतु 150 रुपए थी। जब उन सज्जन की बारी आई तो उन्होंने काउंटर पर दो पचास के नोट तथा बाकी पचास रुपए की चिल्लर देनी चाही परंतु काउंटर पर बैठी महिला कर्मचारी ने चिल्लर लेने से सख्त मना कर दिया। उन्होंने कहा कि चिल्लर कब तक गिनते रहेंगे। सज्जन ने बहुत अनुनय किया कि मेरे पास चिल्लर ही है, दूसरे नोट नहीं है। बिटिया के लिए फॉर्म ले जाना जरूरी है परंतु उनकी बात नहीं सुनी गई। मेरे मित्र ने उनसे चिल्लर लेकर उन्हें पचास रुपए का नोट तो दे दिया। परंतु मेरे मन में यह बात चुभ रही थी क्यों कुछ शिक्षित एवं सभ्य कहलाने वाले लोग अपनी जरा-सी असुविधा के लिए किसी गरीब की मजबूरी नहीं समझते?

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झील सी आंखों में उतर जाना भी

आइना हो जो मुकाबिल तो संवर जाना भी,
किसी की झील सी आंखों में उतर जाना भी।
जिस्म की हद से किसी रोज गुजर जाना भी,
खुशबुओं सा कभी हर सिम्त बिखर जाना भी।
उसमें सहरा भी है ये जान सकोगे कैसे,
तुमने कश्ती से समंदर को अगर जाना भी।
दिल की बस्ती की तरफ भी कभी हो लेते तुम,
तुमने तो छोड ही रक्खा है उधर जाना भी।
सिर्फ लब ही नहीं नजरों की जबां भी पढिए
उसके इकरार में शामिल है मुकर जाना भी।
हुई जंजीर थकन और सफर बाकी है,
यानी दुश्वार है चलना भी ठहर जाना भी।

Thursday, November 19, 2009

हर फ़कीरों का घर नहीं होता

आपका साथ अगर नहीं होता

खुबसूरत सफर नहीं होता

सिर्फ़ हैवानियत ही रह जाती

जज्ब -ए-इश्क़ अगर नहीं होता

पूजता चाँद को भला कोई

खुबसूरत अगर नहीं होता

आसमान है ज़मीन है लेकिन

हर फ़कीरों का घर नहीं होता।

Tuesday, November 17, 2009

वो बेनकाब आई

एक लड़की रोजाना बुर्के में कॉलेज जाती thi....
एक लड़का उस लड़की को बेहद प्यार करता tha॥
लड़का रोजाना उस लड़की को रस्ते में जाते हवे छेडा करता tha....
लड़का लड़की से कहता ......एक पर्दा नाशी ...पर्दा हटा और अपने हुस्न का जलवादिखा ॥
लड़की उसकी बात को सुनती और चुपचाप चली जाती ...
एक दिन लड़के ने रस्ते में लड़की का हाथ पकड़कर कहा ...
जान ,जानेमान , जानेजिगर , जाने तमन्ना ॥
अगर तुमने कल मेरी मोहब्बत को काबुल नहीं किया तो मैं अपनी जान दे दूंगा ।
लड़की मुस्कुराकर चली गयी ॥
लड़की 3 - 4 दिन तक कोल्लेज नहीं गई
बाद में लड़की को पता चला की लड़के ने सच में खुदखुशी कर ली है ॥
लड़की रोटी हुयी लड़के की कब्र पर गयी और अपना नकाब खोल कर बोली ॥
अ मेरे गुमनाम आशिक देख तेरी महबूबा आई है जी भर के उसका दीदार कर ले ॥
तभी कब्र में से आवाज़ आती है ॥
हें खुदा ये तेरी कैसी खुदाई है ,आज हम परदे में हैं और वो बेनकाब आई

दोस्त का प्यार चाहिए

ना ज़मीन, ना सितारे, ना चाँद, ना रात चाहिए,
दिल मे मेरे, बसने वाला किसी दोस्त का प्यार चाहिए,
ना दुआ, ना खुदा, ना हाथों मे कोई तलवार चाहिए,
मुसीबत मे किसी एक प्यारे साथी का हाथों मे हाथ चाहिए,
कहूँ ना मै कुछ, समझ जाए वो सब कुछ,
दिल मे उस के, अपने लिए ऐसे जज़्बात चाहिए,
उस दोस्त के चोट लगने पर हम भी दो आँसू बहाने का हक़ रखें,
और हमारे उन आँसुओं को पोंछने वाला उसी का रूमाल चाहिए,
मैं तो तैयार हूँ हर तूफान को तैर कर पार करने के लिए,
बस साहिल पर इन्तज़ार करता हुआ एक सच्चा दिलदार चाहिए,
उलझ सी जाती है ज़िन्दगी की किश्ती दुनिया की बीच मँझदार मे,
इस भँवर से पार उतारने के लिए किसी के नाम की पतवार चाहिए,
अकेले कोई भी सफर काटना मुश्किल हो जाता है,
मुझे भी इस लम्बे रास्ते पर एक अदद हमसफर चाहिए,
यूँ तो 'मित्र' का तमग़ा अपने नाम के साथ लगा कर घूमता हूँ,
पर कोई, जो कहे सच्चे मन से अपना दोस्त, ऐसा एक दोस्त
कदम तो सभी साथ चलते हैजिन्दगी भर कोई साथ निभाहता नही
अगर रोकर भुलाई जाती यादेतो हसकर कोई गम छुपता नहीं

Monday, August 17, 2009

हँसना मना है ................

बीवी को सौ किस
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संता ने पूरी तनख्वाह मौजमस्ती में खर्च कर दी और जब बीवी को पैसे भेजने की बारी आई तो लिख दिया-डार्लिंग। इस महीने पैसे नहीं भेज सकता इसलिए सौ किस भेज रहा हूं।
कुछ दिन बाद ही बीवी का जवाब आया- किस भेजने के लिए शुक्रिया। दूधवाला दो किस लेकर पूरे महीने दूध देने को तैयार हो गया है। बिजली वाला भी सात किस में मान गया है।
मकान-मालिक भाड़े के बदले दो-तीन किस ले जाता है। दुकानदार सिर्फ किस से नहीं मान रहा। उसे दूसरे आइटम देकर मना लूंगी। आप चिंता नहीं करना। अभी भी 35 किस पड़े हुए हैं। उनसे महीने भर का खर्च चल जाएगा।

Wednesday, August 12, 2009

आए कन्हैया हर आंगन में

नंद के आनंद भये,जय कन्हैया लाल की
जवाननकूंहाथी-घोडा, बूढनकूंपालकी।

ब्रज के लोग कन्हैया के जन्म की खुशी में नाचते हुए यह गा उठते हैं। यहां जन्माष्टमी अनोखे रूप में मनाई जाती है। संपूर्ण वातावरण वात्सल्य से भर उठता है। हर घर में खुशी की लहर दौड जाती है। मानो घर के सबसे छोटे व लाडले शिशु का जन्मोत्सव मनाया जा रहा हो।
[बधाई गायन]
नंद गांव में श्रीकृष्ण जन्म बधाई उत्सव रक्षाबंधन से ही शुरू हो जाता है। सदियों से चली आ रही परंपरा के अनुसार, भादो माह के कृष्ण द्वितीया के दिन से यहां के नंद भवन में मदलिराऔर चाव आदि वाद्य यंत्रों पर बधाई गायन होने लगता है। ब्रज बालाएं ब्रज भयौहै महिरके पूत .. और रानी चिर जीवैतेरौश्याम .. जैसे बधाई गीत गाकर खूब नृत्य करती हैं। अगले दिन सुबह से ही अनेक कार्यक्रम होने लगते हैं। मथुरा के अधिकांश मंदिरों में जन्माष्टमी से एक दिन पहले कृष्ण सप्तमी की शाम को शोदा महारानी को शीरा-पूडी और रसीले पदार्थो से भोग लगाया जाता है। कन्हैया के जन्म की खुशी में घर-आंगन और गली-मोहल्लों को दुल्हन की तरह सजाया जाता है। घर-घर में तरह-तरह के व्यंजन और पकवान बनते हैं। [ठाकुर जी का श्रृंगार] इस दिन सुबह से ही अधिकांश घरों में व्रत रखा जाता है। कुछ लोग जल भी ग्रहण नहीं करते। घर-घर में धनिया की पंजीरीऔर पंचामृत बनाया जाता है। पूरे दिन भजन-कीर्तन के कार्यक्रम चलते रहते हैं। रात्रि को जैसे ही 12बजते हैं, ब्रज के अधिकांश मंदिरों और घरों से शंख, घंटा, घडियाल आदि की आवाज गूंज उठती है। सभी अपने-अपने ठाकुर विग्रहों[कृष्ण-मूर्ति] का पंचामृत से अभिषेक करते हैं।
अधिकांश मंदिरों में ठाकुर जी का सुंदर श्रृंगार किया जाता है। वृंदावन के ठाकुर श्री बांके बिहारी मंदिर में वर्ष भर में केवल इसी दिन सुबह मंगला आरती होती है। समूचे ब्रज में दीपावली जैसी धूम रहती है। मंदिरों और घरों में मंगल सूचक बधाई गायन होता है। जगह-जगह श्रीमद्भागवत के उन अध्यायों का कथा पाठ किया जाता है, जिनमें श्रीकृष्ण के जन्म का वर्णन है। रास-मंडलियां भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की लीला का मंचन धूमधाम से करती हैं। गोवर्धनमें श्रद्धालु उत्साह के साथ गिरिराज पर्वत की परिक्रमा करते हैं। [दिन में ही जन्माष्टमी] वृंदावन स्थित सप्त देवालयों में तीन देवालय-राधादामोदर मंदिर, राधारमणमंदिर और राधा गोकुलानंदमंदिर में जन्माष्टमी दिन में ही मना ली जाती है। माना जाता है कि राधारमणमंदिर में भगवान शालिग्रामके स्वरूप में विराजमान हैं। राधा गोकुलानंदमंदिर में प्रभु चैतन्य महाप्रभु के रूप में और राधादामोदरमंदिर में साक्षात भगवान कृष्ण गिरिराज शिला के रूप में विराजमान हैं। भक्त मानते हैं कि इन मंदिरों में ठाकुरजीप्रत्यक्ष रूप में विराजमान हैं, इसलिए वे दिन में ही जन्मोत्सव मना लेते हैं।
मंदिरों के गोस्वामी भी कहते हैं कि उनके ठाकुर जी बहुत कोमल हैं। इसलिए उन्हें रात्रि में जगाना उचित नहीं है। श्रृंगार और पूजन के बाद भक्तों के बीच प्रसाद, फल, मेवा और मिष्ठान्न बांटे जाते हैं। अपने प्रभु का दर्शन कर भक्त आनंद विभोर होकर ब्रज के लोकगीत और रसिया गाते हैं। शाम को ठाकुर जी का छप्पन प्रकार के व्यंजनों से भोग लगाया जाता है। [दधिकांदा का आयोजन] राधारमणमंदिर में जन्माष्टमी पर ठाकुर जी का अभिषेक रात्रि 12बजे के स्थान पर दोपहर 12बजे होता है। इस दिन मंदिर के श्रीविग्रहको नया पीला वस्त्र धारण कराया जाता है। साथ ही, उन्हें सोने के सिंहासन पर विराजितकिया जाता है। इस दिन मंदिर में तिल-पंजीरी का विशेष भोग लगाया जाता है। साथ ही, विशेष उत्सव आरती भी होती है। जन्माष्टमी के अगले दिन समूचे ब्रज में नंदोत्सवकी धूम रहती है। हर घर और मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण को पालने में झुलाया जाता है और बधाइयां गाई जाती हैं। हर घर, आश्रम और मंदिर में पूडी-पकवान बनते हैं। जगह-जगह दधिकांदा होता है, जिसमें दही में हल्दी मिलाकर एक-दूसरे पर उलीचाजाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, कंस के मथुरा स्थित कारागार में माता देवकी के आठवें पुत्र के रूप में भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था। पिता वसुदेव ने कंस के भय से उन्हें गोकुल में नंद बाबा के यहां पहुंचा दिया। अगले दिन जब गोकुल वासियों को नंद-यशोदा के घर पुत्र-रत्न की प्राप्ति का समाचार मिला, तो वे लोग उन्हें बधाई देने के लिए नंद भवन जा पहुंचे। इस परंपरा को आज भी गोकुल नाथ मंदिर में नंदोत्सवके रूप में मनाया जाता है। सुबह मंदिर से कन्हैया की झांकी शोभा-यात्रा के रूप में निकाली जाती है। भक्तगण खिलौने भी लुटाते हैं। [मटकी-फोड प्रतियोगिता] बरसाने के लोग बधाई देने के लिए नंदगावआते हैं। साथ ही, यहां स्थित नंद कुंड सरोवर पर मल्ल- दंगल का आयोजन होता है, जिसमें देश के कई नामी-गिरामी पहलवान भाग लेते हैं। यह आयोजन कृष्ण के बडे भाई बलराम की याद में किया जाता है, क्योंकि वे मल्ल युद्ध के प्रेमी थे। मंदिर प्रांगण में मटकी फोड लीला का भी आयोजन होता है, जिसमें भक्त गण कई प्रकार की अठखेलियां करते हैं। साथ ही, मंदिर-प्रांगण में दूध-दही भी बिखेर दिया जाता है। भक्त मानते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण बाल-क्रीडा के दौरान दूध-दही को जमीन पर गिरा दिया करते थे। इसलिए इसे परंपरा का रूप दे दिया गया है। भक्तगण कीर्तन करते हैं, नाचते हैं और खुशियां मनाते हैं। यह कार्यक्रम दोपहर तक चलता है। लड्डू गोपाल स्वरूप ठाकुर जी झूले पर झूलते हैं और माताएं-बहनें अपने आराध्य ठाकुर के बाल रूप को निहारते हुए बलइयालेती हैं।

Friday, August 7, 2009

समझदार है मेरी बहना

यूँ तो दुनिया में कई सारे रिश्ते हैं, मगर इन सब रिश्तों में सबसे प्यारा और पवित्र रिश्ता है भाई-बहन का। अगर भाई अपनी बहन की आँख में एक आँसू नहीं देख सकता तो बहन भी अपने भाई के लिए कुछ भी करने को हर पल तैयार रहती है। जहाँ ये रिश्ता चाँद की चाँदनी के समान शीतलता प्रदान करता है वहीं यह सागर की गहराइयों के समान गंभीरता भी रखता है।भाई-बहन एक-दूसरे के सबसे अच्छे दोस्त होते हैं। उनके बीच कभी कोई बात छिपती नहीं, वे एक-दूसरे की मन की बात बिना कहे ही जान लेते हैं। भाई-बहन में माता-पिता के गुण भी देखने को मिलते हैं। वे उसी तरह एक-दूसरे की चिंता करते हैं और एक-दूसरे का ध्यान रखते हैं। भाई-बहन के रिश्ते में कभी स्वार्थ नहीं होता, होती हैं तो बस निःस्वार्थ भावना एक-दूसरे के लिए बेहतर से बेहतर करने की इस रिश्ते में एक-दूसरे के लिए प्रेम, सम्मान, आत्मीयता, त्याग सब कुछ देखने को मिलता है।बहन अगर खुशियों का खजाना होती है तो भाई उस खजाने की चाबी। सच कहें तो भाई के जीवन में रौनक ही बहन से होती है। वो बहन ही होती है जिसको तोहफा देने के लिए कभी वो पॉकेटमनी के पैसे इकट्ठा करता है तो कभी छोटी-सी बात पर किसी से भी लड़ पड़ता है। और वही बहन उसकी जिंदगी होती है जो उसे छेड़ती है, जरा-जरा-सी बात की शिकायत जाकर माँ से कर देती हैं। लड़ाई भी कर लेती है, लेकिन उसी से सबसे ज्यादा प्यार भी करती है।एक भाई से अच्छा सलाहकार बहन के लिए कोई हो नहीं सकता। बहन अपनी कोई गलती भाई से छिपा नहीं सकती। बता ही देती है और भाई भी उससे कुछ दुराव-छिपाव नहीं रखता। वह हमेशा उसकी मदद को तत्पर रहता है। बहन को दर्द होने पर वह आँख भाई की ही होती है जिसमें सबसे पहला आँसू भर आता है। बहन कभी कहती नहीं मगर महसूस करती है कि उसके लिए जान तक पर खेल जाने वाला उसका भाई उससे बेइंतहा प्यार करता है। और यही उनके रिश्ते की शक्ति होती है।

Tuesday, August 4, 2009

प्रदीप धानिया

फूलों सी नाजुक चीज है दोस्ती,
सुर्ख गुलाब की महक है दोस्ती,
सदा हँसने हँसाने वाला पल है दोस्ती,
दुखों के सागर में एक कश्ती है दोस्ती,
काँटों के दामन में महकता फूल है दोस्ती,
जिंदगी भर साथ निभाने वाला रिश्ता है दोस्ती ,
रिश्तों की नाजुकता समझाती है दोस्ती,
रिश्तों में विश्वास दिलाती है दोस्ती,
तन्हाई में सहारा है दोस्ती,
मझधार में किनारा है दोस्ती,
जिंदगी भर जीवन में महकती है दोस्ती,
किसी-किसी के नसीब में आती है दोस्ती,
हर खुशी हर गम का सहारा है दोस्ती,
हर आँख में बसने वाला नजारा है दोस्ती,
कमी है इस जमीं पर पूजने वालों ,
की वरना इस जमीं पर "खुदा" है दोस्ती.............

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